तथागत जय तेरी भगवान
रचना- दिव्यार्थ
जय तेरी भगवान तथागत ! जय तेरी भगवान !!
तुमने जग को सत्य सिखाया, देकर विद्या दान।
मानवता का पाठ पढ़ाया, सब है एक समान।। 1 ।।
देश जगाया ज्ञान बताया, उगा सभ्यता भान।
दलित पतितपन मार भगाया, पावन पतित महान।। 2।।
मानव जैंग ने विकास पाया, पाकर उन्नति दान।
शान्ति-प्रेम जग में छलकाया, दया, धर्म गुण खान।। 3।।
धर्म धाम भारत अति सुन्दर, निज गुरु गौरव ज्ञान।
शान्त सुखी हो तुम गुरु पावन, महाघन गरिमा ज्ञान।। 4।।
जय तेरी भगवान तथागत ! जय तेरी भगवान !!
बुद्ध-अभिनन्दन
रचना- कु. डॉ. विद्यावती मालविका
आज उन्हें शत शत वन्दन है।। टेक। ।
जिन चरणों से पुनीत हुयी, मध्य देश की भूमि श्यामला।
जगी अहिंसा ज्योति जगत में, विकसी अभिनव बौद्ध कला। ।
मानव उर में नई चेतना, नये रोग का सृजन हुआ।
समता, बन्धुता, स्वतंत्रता का, उदय कलुश का दमन हुआ।।
उन्हीं तथागत की स्मृति में, खोया मेरा तन मन है।
आज उन्हें शत शत वन्दन है।। 1 ।|
जगा लुम्बिनी कानन जागी, उरुवेला की वन्य धरा।
ऋषिपत्तन का अहोभाग्य सब, जाग उठी रे वसुन्धरा ।।
चले भिक्खु ले अमृत घट को, मानवता का रूप चला।
तृषित जनों की प्यास बुझी, औ जग में नया प्रदीप जला।।
उन परम शास्ता के चरणों में, मेरा सदा नमन है ।
आज उन्हें शत शत वन्दन है।। 2।।
मृगदाव, नालन्दा, साँची, तक्षशिला के भग्न विहार ।
बाघ, अजन्ता, एलोरा औ, कुशीनगर के जीर्णद्वार ।।
लंका, बर्मा, श्याम, मलाया, हिम प्रदेश के अनुगामी ।
सभी बोलते नत-मस्तक
क हा, बुद्ध सरणं गच्छामी।।
उन्ही बुद्ध का भाव कुसुम से, मेरा अभिनन्दन है ।
आज उन्हें शत शत वन्दन है।। 3।।

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