1. त्रिरत्न वन्दना

रचना- दिव्यार्थ

गति मन से पावन हो करके, "मैं बुद्ध शरण में जाता हूँ"।

उपदेश सुगत का सद्गगति है, मैं सत्य को शीश झुकाता हूँ।। 1।।

कल्याण मार्ग सबं दुख मोचन, "मैं धर्म शरण में जाता हॅँ"।

है बुद्ध धर्म निर्वाण मार्ग, त्रिपिटक को शीश झुकाता हूँ।। 2।।

चीवर धारी गुरु ज्ञान-पथिक, "मैं संघ शरण में जाता हूँ"।

विद्या विवेक उपदेश गुरु, जन, को मैं शीश झुकाता हूँ।॥ 3

"मैं बुद्ध शरण और धर्म शरण और संघ शरण में जाता हूं ।

त्रिशरण, त्रिरत्न, वन्दन करता, श्रद्धा शीश झुकाता हूँ।। 4।।




2. बुद्ध-अर्चना

राग- बागेश्री

बुद्ध चरण बलिहारी जाऊँ । । टेक। ।

तन, मन, धन सब अर्पित करके, चरण कमल में शीश नवाऊँ ।।

बुद्ध चरण बलिहारी जाऊँ। । 1।।

प्रेम पुष्प श्रद्धा सु अपत शुद्ध चित्त अरगजा बनाऊँ।

अंतर उज्ज्वल कर मन मजन, धर्म निष्ठा नित धूप जलाऊँ।।

बुद्ध चरण, बलिहारी जाऊँ।। 2।। 

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह अरु, क्रोध कपट रूपी कपूर जलाऊँ।

ज्ञान, शील, करुणा अरु समता, अहर्निश हृदय साथ लगाऊँ । ।

बुद्ध चरण बलिहारी जाऊँ।। 3।।

संशय छेद कर समबुद्धि, और प्रपंच को उर से नसाऊँ।

पूरण प्रेम में "पागल" होकर, जय भीम बुद्ध नाद गजाऊँ ।।

बुद्ध चरण बलिहारी जाऊँ।। 4।।