रामचरितमानस घोर जातिवाद Jativaad का पिटारा
अर्थात जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है, वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं।
संविधान constitution of india जाति और लिंग के आधार पर भेद करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है।लेकिन तुलसी की रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच नीच मानने की वकालत करती है।
देखें : पेज 986, दोहा 99 (3), उ. का.
देखें : पेज 1029, दोहा 129 छंद (1),
उत्तर कांड
अर्थात अहीर (यादव), यवन (बाहर से आये हुए लोग जैसे इसाई और मुसलमान आदि) आदिवासी, दुष्ट, सफाई कर्मचारी आदिअत्यंत पापी हैं, नीच हैं। तुलसी दास कृत रामायण (रामचरितमानस) में तुलसी ने छुआछूत की वकालत की है, जबकि यह कानूनन अपराध है।
देखें: पेज 338, दोहा 12(2)अयोध्या कांड।
तुलसी ने रामायण में मंथरा नामक दासी(आया) को नीच जाति वाली कहकर अपमानित किया जो संविधान का खुला उल्लंघन है।
देखें : पेज 338, दोहा 12(2) अ. का.
केवट (निषाद,
मल्लाह) समाज, वेद शास्त्र दोनों से नीच है, अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए।
तुलसी ने केवट को
कुजात कहा है, जो संविधान का
खुला उल्लंघन है। देखें :
पेज 498 दोहा 195 (1), अ.का.
अर्थात वह
दुर्बुद्धि नीच जाति वाली विचार करने लगी है कि किस प्रकार रात ही रात में यह काम
बिगड़ जाए।
भरत की माता कैकई
से तुलसी ने शारीरिक व मानसिक गुलाम लोगों के साथ-साथ स्त्री और खासकर नौकरानी को
नीच और धोखेबाज कहलवाया है,‘कानों, लंगड़ों, और कुबड़ों को नीच और धोखेबाज जानना चाहिए, उन में स्त्री और खास कर नौकरानी को… इतना कह कर भरत की माता मुस्कराने लगी। ये संविधान
का उल्लंघन है।
देखें : पेज 339,दोहा 14, अ. का.
तुलसी ने निषाद के मुंह से उसकी जाति को चोर, पापी, नीच कहलवाया है।
अर्थात हमारी तो
यही बड़ी सेवा है कि हम आपके कपड़े और बर्तन नहीं चुरा लेते (यानि हम तथा हमारी
पूरी जाति चोर है, हम लोग जड़ जीव
हैं, जीवों की हिंसा करने वाले
हैं)।
जब संविधान सबको
बराबर का हक देता है, तो रामायण को
गैरबराबरी एवं जाति के आधार पर ऊंच-नीच फैलाने वाली व्यवस्था के कारण उसे तुरंत
जब्त कर लेना चाहिए, नहीं तो इतने
सालों से जो रामायण समाज को भ्रष्ट करती चली आ रही है। इसकी पराकाष्ठा अत्यंत
भयानक हो सकती है। यह व्यवस्था समाज में विकृत मानसिकता के लोग उत्पन्न कर रहे है
तथा देश को अराजकता की तरफ ले जा रही है। देश के कर्णधार, सामाजिक चिंतकों,विशेष कर युवा वर्ग को तुरंत इसका संज्ञान लेकर न्यायोचित कदम उठाना चाहिए,
नहीं तो मनुवादी संविधान को न मानकर अराजकता की
स्थिति पैदा कर सकते हैं। जैसा कि बाबरी मस्जिद गिराकर, सिख नरसंहार करवा कर, ईसाइयों और मुसलमानों का कत्लेआम (ग्राहम स्टेंस की हत्या तथा
गुजरात दंगा) कर मानवता को तार-तार पहले ही कर चुके हैं। साथ ही सत्ता का दुरुपयोग
कर ये दुबारा देश को गुलामी में डाल सकते हैं, और गृह युद्ध छेड़कर देश को खंड खंड करवा सकते है।

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