#ये कैसा बदलाव??

 

ठग्गू बोला पेट पकड़ कर, हूँ बेहद परेशान।

पुश्तैनी धंधा है मंदा, कारण है संविधान।।

 

कितना अच्छा वक्त जो बीता, था पुरखों का राज।

घर बैठे ही मिल जाते थे, पैसे वस्त्र अनाज।।

 

धर्म का नारा लगते ही, सब घुटनों पर थे आ जाते।

मनचाहे दुश्मन का पुरखे, पत्ता साफ कराते।।

 

नारी थी उपभोग की वस्तु, यज्ञ-हवन, देवालय में।

देव की दासी चुनकर लाते, करते भोग ईशालय में।।

 

ye kaisa badlav

सामाजिक अपमान था करना, बाएं हाथ का काम।

नीच जात का घोषित कर दो, समझो काम तमाम।।

 

सारा गाँव निरक्षर रखते, तर्क ज्ञान से दूर।

अंधविश्वास की घुट्टी देकर, रखते सबको चूर।।

 

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जिसने ये संविधान लिखा, ना समझे उसका दाँव।

एक ही वार में कर डाला, ये कैसा बदलाव??

 

🌹🙏जय हिन्द! जय भारत!! जय संविधान!!! 🙏🌹